Monday, April 5, 2010

अथ बजरंग बाण

अथ बजरंग बाण
।। दोहा ।।


निश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करें सनमान ।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ।।

जय हनुमन्त सन्त हितकारी ।
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।

जन के काज विलम्ब न कीजै ।
आतुर दौरि महा सुख दीजै ।।

जैसे कूदि सुन्धु वहि पारा ।
सुरसा बद पैठि विस्तारा ।।

आगे जाई लंकिनी रोका ।
मारेहु लात गई सुर लोका ।।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा ।
सीता निरखि परम पद लीन्हा ।।

बाग उजारी सिन्धु महं बोरा ।
अति आतुर जमकातर तोरा ।।

अक्षय कुमार मारि संहारा ।
लूम लपेट लंक को जारा ।।

लाह समान लंक जरि गई ।
जय जय धुनि सुरपुर मे भई ।।

अब विलम्ब केहि कारण स्वामी ।
कृपा करहु उन अन्तर्यामी ।।

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता ।
आतुर होय दुख हरहु निपाता ।।

जै गिरिधर जै जै सुखसागर ।
सुर समूह समरथ भटनागर ।।

जय हनु हनु हनुमंत हठीले ।
बैरिहि मारु बज्र की कीले ।।

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो ।
महाराज प्रभु दास उबारो ।।

ऊँ कार हुंकार महाप्रभु धावो ।
बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।।

ऊँ हीं हीं हनुमन्त कपीसा ।
ऊँ हुं हुं हनु अरि उर शीशा ।।

सत्य होहु हरि शपथ पाय के ।
रामदूत धरु मारु जाय के ।।

जय जय जय हनुमन्त अगाधा ।
दुःख पावत जन केहि अपराधा ।।

पूजा जप तप नेम अचारा ।
नहिं जानत हौं दास तुम्हारा ।।

वन उपवन, मग गिरि गृह माहीं ।
तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ।।

पांय परों कर जोरि मनावौं ।
यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।।

जय अंजनि कुमार बलवन्ता ।
शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।।

बदन कराल काल कुल घालक ।
राम सहाय सदा प्रति पालक ।।

भूत प्रेत पिशाच निशाचर ।
अग्नि बेताल काल मारी मर ।।

इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की ।
राखु नाथ मरजाद नाम की ।।

जनकसुता हरि दास कहावौ ।
ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।।

जय जय जय धुनि होत अकाशा ।
सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ।।

चरण शरण कर जोरि मनावौ ।
यहि अवसर अब केहि गौहरावौं ।।

उठु उठु उठु चलु राम दुहाई ।
पांय परों कर जोरि मनाई ।।

ऊं चं चं चं चपल चलंता ।
ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता ।।

ऊँ हं हं हांक देत कपि चंचल ।
ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल ।।

अपने जन को तुरत उबारो ।
सुमिरत होय आनन्द हमारो ।।

यह बजरंग बाण जेहि मारै ।
ताहि कहो फिर कौन उबारै ।।

पाठ करै बजरंग बाण की ।
हनुमत रक्षा करैं प्राम की ।।

यह बजरंग बाण जो जापै ।
ताते भूत प्रेत सब कांपै ।।

धूप देय अरु जपै हमेशा ।
ताके तन नहिं रहै कलेशा ।।

।। दोहा ।।

प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान ।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ।।


No comments: