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Sunday, April 4, 2010
श्री हनुमान चालीसा
श्री हनुमान चालीसा
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।
बरनउं रघुबर विमल जसु, जो दायकु पल चारि ।।
बुद्घिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुद्घि विघा देहु
मोहि, हरहु कलेश विकार ।।
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जय कपीस तिहुं लोग उजागर ।।
रामदूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ।।
महावीर विक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ।।
कंचन बरन विराज सुवेसा ।
कानन कुण्डल कुंचित केसा ।।
हाथ वज्र औ ध्वजा विराजै ।
कांधे मूंज जनेऊ साजै ।।
शंकर सुवन केसरी नन्दन ।
तेज प्रताप महा जगवन्दन ।।
विघावान गुणी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ।।
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा ।
विकट रुप धरि लंक जरावा ।।
भीम रुप धरि असुर संहारे ।
रामचन्द्रजी के काज संवारे ।।
लाय संजीवन लखन जियाये ।
श्री रघुवीर हरषि उर लाये ।।
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।।
सहस बदन तुम्हरो यश गावै ।
अस कहि श्री पति कंठ लगावै ।।
सनकादिक ब्रहादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ।।
यह कुबेर दिकपाल जहां ते ।
कवि कोबिद कहि सके कहां ते ।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राजपद दीन्हा ।।
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना ।
लंकेश्वर भये सब जग जाना ।।
जुग सहस्त्र योजन पर भानू ।
लाल्यो ताहि मधुर फल जानू ।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही ।
जलधि लांघि गए अचरज नाहीं ।।
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ।।
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हांक ते कांपै ।।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ।।
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ।।
संकट ते हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ।।
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ।।
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोइ अमित जीवन फल पावै ।।
चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्घ जगत उजियारा ।।
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ।।
अष्ट सिद्घि नवनिधि के दाता ।
अस वर दीन जानकी माता ।।
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ।।
तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ।।
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेई सर्व सुख करई ।।
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।
जय जय जय हनुमान गुसांई ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाई ।।
जो शत बार पाठ कर सोई ।
छूटहिं बंदि महासुख होई ।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्घि साखी गौरीसा ।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महं डेरा ।।
।। दोहा ।।
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।।
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